kalam bhavukta ki
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इक कोरे कागज़ पर वो एक तस्वीर बनाने बैठा,
फिर अपनी कलाकारी पर था वो ऐंठा,
कुछ गलतियों पर उसको दुःख तो था,
पर वो किससे अपनी कहानी कहता?
बारी आई रंग चढ़ाने की,
तो कुछ जाने-पहचाने से रंग लिए उसने,
अपने नाज़ुक हाथों से ब्रश फेरता,
थोड़े और रंग, संग लिए उसने।
एक रंग सबसे ज़्यादा था फिरा,
पर वो चित्रकार उसे मिटा भी ना पाया मिटाने से,
खैर! वो दिखना भी ज़रूरी था,
वो रंग छिपता नहीं, ना दिखाने से।
उस चित्रकार को वो रंग ज़्यादा प्यारा ना था,
पर उसी रंग ने उसे बनाया था धनवान,
वो ‘गरीबी’ का रंग था,
और वो चित्रकार था ख़ुद भगवान।
तस्वीर बनके तैयार हुई,
उसको फिर अपने रंग चुनने पर थोड़ा दुःख हुआ था,
आबादी बढ़ाता, गरीबी फैलाता,
एक और गरीब पैदा हुआ था।
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